लेखनी कविता - बिजली सी कौंद गयी आँखों के आगे - ग़ालिब

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बिजली सी कौंद गयी आँखों के आगे / ग़ालिब बिजली सी कौंद गयी आँखों के आगे, तो क्या, बात करते कि मैं लब-तश्नऐ-तक़री भी था । "वह आकर और एक झलक-सी ...

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