लेखनी कविता - अफ़सोस कि दनदां का किया रिज़क़ फ़लक ने - ग़ालिब

76 Part

45 times read

0 Liked

अफ़सोस कि दनदां का किया रिज़क़ फ़लक ने / ग़ालिब अफ़सोस कि दनदां का किया रिज़क़ फ़लक ने जिन लोगों की थी दर-ख़ुर-ए-अक़्द-ए-गुहर अंगुश्त काफ़ी है निशानी तिरा छल्ले का न ...

Chapter

×