लेखनी कविता - कोह के हों बार-ए-ख़ातिर गर सदा हो जाइये - ग़ालिब

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कोह के हों बार-ए-ख़ातिर गर सदा हो जाइये / ग़ालिब कोह के हों बार-ए-ख़ातिर गर सदा हो जाइए बे-तकल्लुफ़ ऐ शरार-ए-जस्ता क्या हो जाइए   बैज़ा-आसा नंग-ए-बाल-ओ-पर है ये कुंज-ए-क़फ़स अज़-सर-ए-नौ ...

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