लेखनी कविता - गरम-ए-फ़रयाद रखा शक्ल-ए-निहाली ने मुझे - ग़ालिब

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गरम-ए-फ़रयाद रखा शक्ल-ए-निहाली ने मुझे / ग़ालिब गरम-ए फ़रयाद रखा शकल-ए निहाली ने मुझे तब अमां हिजर में दी बरद-ए लियाली ने मुझे निसयह-ओ-नक़द-ए दो-आलम की हक़ीक़त म'लूम ले लिया मुझ ...

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