लेखनी कविता -ज़-बस-कि मश्क़-ए-तमाशा जुनूँ-अलामत है - ग़ालिब

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ज़-बस-कि मश्क़-ए-तमाशा जुनूँ-अलामत है / ग़ालिब ज़-बस-कि मश्क़-ए-तमाशा जुनूँ-अलामत है कुशाद-ओ-बस्त-ए-मिज़्हा सीली-ए-नदामत है न जानूँ क्यूँकि मिटे दाग़-ए-तान-ए-बद-अहदी तुझे कि आइना भी वार्ता-ए-मलामत है ब-पेच-ओ-ताब-ए-हवस सिल्क-ए-आफ़ियत मत तोड़ निगाह-ए-अज्ज़ सर-ए-रिश्ता-ए-सलामत है ...

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