लेखनी कविता - ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद - ग़ालिब

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ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद / ग़ालिब ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद वगरना हम तो तवक़्क़ो ज़्यादा रखते हैं   तन-ए-ब-बंद-ए-हवस दर नदादा रखते हैं दिल-ए-ज़-कार-ए-जहाँ ऊफ़्तादा रखते हैं तमीज़-ए-ज़िश्ती-ओ-नेकी में ...

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