लेखनी कविता - देख कर दर-पर्दा गर्म-ए-दामन-अफ़्शानी मुझे - ग़ालिब

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देख कर दर-पर्दा गर्म-ए-दामन-अफ़्शानी मुझे / ग़ालिब देख कर दर-पर्दा गर्म-ए-दामन-अफ़्शानी मुझे कर गई वाबस्ता-ए-तन मेरी उर्यानी मुझे   बन गया तेग़-ए-निगाह-ए-यार का संग-ए-फ़साँ मरहबा मैं क्या मुबारक है गिराँ-जानी मुझे ...

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