लेखनी कविता - पीनस में गुज़रते हैं जो कूचे से वह मेरे - ग़ालिब

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पीनस में गुज़रते हैं जो कूचे से वह मेरे / ग़ालिब पीनस में गुज़रते हैं जो कूचे से वह मेरे कंधा भी कहारों को बदलने नहीं देते ...

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