लेखनी कविता - है बज़्म-ए-बुतां में सुख़न आज़ुर्दा लबों से - ग़ालिब

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है बज़्म-ए-बुतां में सुख़न आज़ुर्दा लबों से / ग़ालिब है बज़्म-ए-बुताँ में सुख़न आज़ुर्दा-लबों से तंग आए हैं हम ऐसे ख़ुशामद-तलबों से है दौर-ए-क़दह वजह-ए-परेशानी-ए-सहबा यक-बार लगा दो ख़ुम-ए-मय मेरे लबों ...

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