लेखनी कविता - रहा गर कोई ता क़यामत सलामत - ग़ालिब

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रहा गर कोई ता क़यामत सलामत / ग़ालिब रहा गर कोई ता क़यामत सलामत फिर इक रोज़ मरना है हज़रत सलामत जिगर को मिरे इश्क़-ए-खूँ-नाबा-मशरब लिखे है ख़ुदावंद-ए-नेमत सलामत अलर्रग़्मे दुश्मन ...

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