लेखनी कविता - वां उस को हौल-ए-दिल है तो यां मैं हूं शरम-सार - ग़ालिब

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वां उस को हौल-ए-दिल है तो यां मैं हूं शरम-सार / ग़ालिब वाँ उस को हौल-ए-दिल है तो याँ मैं हूँ शर्म-सार यानी ये मेरी आह की तासीर से न हो ...

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