लेखनी कविता - सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर - ग़ालिब

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सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर / ग़ालिब सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर तग़य्युर आब-ए-बर-जा-मांदा का पाता है रंग आख़िर न की सामान-ए-ऐश-ओ-जाह ने तदबीर वहशत की हुआ जाम-ए-ज़मुर्रद भी मुझे दाग़-ए-पलंग आख़िर ...

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