लेखनी कविता -हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुशकिल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़ - ग़ालिब

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हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुशकिल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़ / ग़ालिब हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़ दुआ क़ुबूल हो या रब कि उम्र-ए-ख़िज़्र दराज़ न हो ब-हर्ज़ा बयाबाँ-नवर्द-ए-वहम-ए-वुजूद हुनूज़ तेरे तसव्वुर में है नशेब-ओ-फ़राज़ विसाल जल्वा तमाशा है पर ...

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