लेखनी कविता - अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर - कैफ़ी आज़मी

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अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर / कैफ़ी आज़मी अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो मुझ से बिखरे हुये गेसू नहीं देखे जाते सुर्ख़ आँखों की क़सम काँपती पलकों की क़सम थर-थराते ...

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