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औरत / कैफ़ी आज़मी उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे क़ल्ब-ए-माहौल[1] में लर्ज़ां[2] शरर-ए-जंग[3] हैं आज हौसले वक़्त के और ज़ीस्त[4] के यक-रंग हैं आज आबगीनों[5] में तपाँ[6] ...