लेखनी कविता - कभी जमूद कभी सिर्फ़ इंतिशार सा है - कैफ़ी आज़मी

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कभी जमूद कभी सिर्फ़ इंतिशार सा है / कैफ़ी आज़मी कभी जमूद कभी सिर्फ़ इंतिशार सा है जहाँ को अपनी तबाही का इंतिज़ार सा है मनु की मछली, न कश्ती-ए-नूह और ...

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