लेखनी कविता - काफ़िला तो चले - कैफ़ी आज़मी

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काफ़िला तो चले / कैफ़ी आज़मी ख़ारो-ख़स[1] तो उठें, रास्ता तो चले मैं अगर थक गया, काफ़िला तो चले चाँद-सूरज बुजुर्गों के नक़्शे-क़दम ख़ैर बुझने दो इनको, हवा तो चले हाकिमे-शहर, ...

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