लेखनी कविता - खार-ओ-खस तो उठें, रास्ता तो चले - कैफ़ी आज़मी

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खार-ओ-खस तो उठें, रास्ता तो चले / कैफ़ी आज़मी खार-ओ-खस तो उठें, रास्ता तो चले मैं अगर थक गया, काफ़ला तो चले चांद, सूरज, बुजुर्गों के नक्श-ए-क़दम खैर बुझने दो उनको ...

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