लेखनी कविता - चरागाँ - कैफ़ी आज़मी

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चरागाँ / कैफ़ी आज़मी एक दो भी नहीं छब्बीस दिये एक इक करके जलाये मैंने इक दिया नाम का आज़ादी के उसने जलते हुये होठों से कहा चाहे जिस मुल्क से ...

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