लेखनी कविता - दो-पहर - कैफ़ी आज़मी

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दो-पहर / कैफ़ी आज़मी ये जीत-हार तो इस दौर का मुक्द्दर है ये दौर जो के पुराना नही नया भी नहीं ये दौर जो सज़ा भी नही जज़ा भी नहीं ये ...

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