लेखनी कविता - नज़राना - कैफ़ी आज़मी

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नज़राना / कैफ़ी आज़मी तुम परेशान न हो बाब-ए-करम वा न करो और कुछ देर पुकारूँगा चला जाऊँगा इसी कूचे में जहाँ चाँद उगा करते हैं शब-ए-तारीक गुज़ारूँगा चला जाऊँगा रास्ता ...

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