लेखनी कविता - लाई फिर इक लग़्ज़िशे-मस्ताना तेरे शहर में - कैफ़ी आज़मी

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लाई फिर इक लग़्ज़िशे-मस्ताना तेरे शहर में / कैफ़ी आज़मी लाई फिर इक लग़्ज़िशे-मस्ताना[1] तेरे शहर में । फिर बनेंगी मस्जिदें मयख़ाना तेरे शहर में । आज फिर टूटेंगी तेरे घर ...

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