लेखनी कविता - वतन के लिये - कैफ़ी आज़मी

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वतन के लिये / कैफ़ी आज़मी यही तोहफ़ा है यही नज़राना मैं जो आवारा नज़र लाया हूँ रंग में तेरे मिलाने के लिये क़तरा-ए-ख़ून-ए-जिगर लाया हूँ ऐ गुलाबों के वतन पहले ...

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