लेखनी कविता - पलकें बिछाए तो नहीं बैठीं - बालस्वरूप राही

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पलकें बिछाए तो नहीं बैठीं / बालस्वरूप राही कटीले शूल भी दुलरा रहे हैं पाँव को मेरे कहीं तुम पंथ पर पलकें बिछाए तो नहीं बैठीं ! हवाओं में न जाने ...

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