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यात्रा / बालस्वरूप राही इन पथरीले वीरान पहाडों पर ज़िन्दगी थक गई है चढ़ते-चढ़ते । क्या इस यात्रा का कोई अंत नहीं हम गिर जाएँगे थक कर यहीं कहीं कोई सहयात्री ...