लेखनी कविता -पेट और पेटी - बालस्वरूप राही

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पेट और पेटी / बालस्वरूप राही जग बहादुर पेटु इतना, खाना खाता हाथी जितना। तोंद हो गई इतनी मोती, पड़ी पेटियाँ सारी छोटी। उड़ती चारों ओर हंसी है, अब मुश्किल में ...

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