लेखनी कविता -गिलहरी - बालस्वरूप राही

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गिलहरी / बालस्वरूप राही उछल-कूद कर रही गिलहरी, कितनी चंचल, मस्त, छरहरी। पलक झपकते ये जा, ओ जा। पल-भर क भी कहीं न ठहरो। थपकी दी थी इसे राम ने, तब ...

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