लेखनी कविता -परी बन जाती - बालस्वरूप राही

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परी बन जाती / बालस्वरूप राही पंख कहीं से मैं ला पाती मैं भी एक परी बन पाती। उड़ती जाती, धूम मचाती, आसमान को छू कर आती। चन्दा से चाँदनी चुराती, ...

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