लेखनी कविता - अखबार - बालस्वरूप राही

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अखबार / बालस्वरूप राही जिस दिन होता है इतवार, घर में आते ही अखबार, ऐसी छीन-झपट मचती हो जाते हैं हिस्से चार! पापा को खबरों का चाव, माँ पढ़ती दालों के ...

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