लेखनी कविता - मुर्गा - बालस्वरूप राही

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मुर्गा / बालस्वरूप राही एक रोज मुर्गा जी जा कर कहीं-कहीं आप कुछ भाँग सोचा-चाहे कुछ हो जाए, आज नहीं देंगे हम बाँग। आज न बोलेंगे कुकड़ू-कून, देखें होगी कैसे भोर, ...

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