लेखनी कविता -बच्चे और बड़े - बालस्वरूप राही

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बच्चे और बड़े / बालस्वरूप राही सोचा करते है हम बच्चे क्या रक्खा है बचपन में। शीघ्र बड़े हो जाएँ हम भी चाह यही रहती मन में। हम भी रोब जमाएँ ...

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