लेखनी कविता - सभी सोचते - बालस्वरूप राही

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सभी सोचते / बालस्वरूप राही सभी सोचते : कितने प्यारे मेरे पापा, मेरा घर, होता है अभिमान सभी को अपने धर्म, विचारों पर। सही समझना बस अपने को अन्य सभी को ...

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