लेखनी कविता -नई घड़ी - बालस्वरूप राही

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नई घड़ी / बालस्वरूप राही दादा जी की बड़ी पुरानी, मेरी घड़ी नई वाली, कान उमेठे बिना न चलती दादा जी वी ढीठ घड़ी, चाबी खत्म जहाँ हो जाती, हो जाती ...

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