लेखनी कविता -उमीदे-मर्ग कब तक - फ़िराक़ गोरखपुरी

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उमीदे-मर्ग कब तक / फ़िराक़ गोरखपुरी उमीदे-मर्ग कब तक ‍ज़ि‍न्दगी का दर्दे-सर कब तक ये माना सब्र करते हैं महब्बत में मगर कब तक दयारे दोस्त हद होती है यूँ भी ...

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