लेखनी कविता - यूँ माना ज़ि‍न्दगी है चार दिन की - फ़िराक़ गोरखपुरी

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यूँ माना ज़ि‍न्दगी है चार दिन की / फ़िराक़ गोरखपुरी यूँ माना ज़ि‍न्दगी है चार दिन की बहुत होते हैं यारो चार दिन भी ख़ुदा को पा गया वायज़ मगर है ...

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