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निगाहें नाज़ ने पर्दे उठाए हैं / फ़िराक़ गोरखपुरी निगाहें नाज़ ने पर्दे उठाए हैं क्या-क्या । हिजाब अहले मुहब्बत को आए हैं क्या-क्या ।। जहाँ में थी बस इक अफ़वाह ...