लेखनी कविता -हिंज़ाबों में भी तू नुमायूँ नुमायूँ - फ़िराक़ गोरखपुरी

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हिंज़ाबों में भी तू नुमायूँ नुमायूँ / फ़िराक़ गोरखपुरी हिंज़ाबों में भी तू नुमायूँ नुमायूँ फरोज़ाँ फरोज़ाँ दरख्शाँ दरख्शाँ तेरे जुल्फ-ओ-रुख़ का बादल ढूंढता हूँ शबिस्ताँ शबिस्ताँ चाराघाँ चाराघाँ ख़त-ओ-ख़याल की ...

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