लेखनी कविता - वुसअते-बेकराँ में खो जायें - फ़िराक़ गोरखपुरी

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वुसअते-बेकराँ में खो जायें / फ़िराक़ गोरखपुरी वुसअते-बेकराँ में खो जायें. आसमानों के राज़ हो जायें. क्या अजब तेरे चंद तर दामन. सबके दागे-गुनाह धो जायें. शादो-नाशाद हर तरह के हैं ...

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