लेखनी कविता -फरिश्तों और देवताओं का भी - फ़िराक़ गोरखपुरी

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फरिश्तों और देवताओं का भी / फ़िराक़ गोरखपुरी फ़रिश्तों और देवताओं का भी,  जहाँ से दुश्वार था गुज़रना. हयात कोसों निकल गई है,  तेरी निगाहों के साए-साए. हज़ार हो इल्मी-फ़न में ...

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