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देखा हर एक शाख पे / फ़िराक़ गोरखपुरी देखा हर एक शाख पे गुंचो को सरनिगूँ१. जब आ गई चमन पे तेरे बांकपन की बात. जाँबाज़ियाँ तो जी के भी मुमकिन ...