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जो दिलो-जिगर में उतर गई / फ़िराक़ गोरखपुरी जो दिलो-जिगर में उतर गई वो निगाहे-यार कहाँ है अब ? कोई हद है ज़ख्मे-निहाँ की भी कि हयात वहमो गुमाँ है अब ...