लेखनी कविता -अरे ख्वाबे मोहब्बत की - फ़िराक़ गोरखपुरी

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अरे ख्वाबे मोहब्बत की / फ़िराक़ गोरखपुरी अरे ख्वाबे-मुहब्बत की भी क्या ता'बीर होती है. खुलें आँखे तो दुनिया दर्द की तस्वीर होती है. उमीदें जाए और फिर जीता रहे कोई. ...

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