लेखनी कविता - कुछ ग़में-जानां,कुछ ग़में-दौरां - फ़िराक़ गोरखपुरी

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कुछ ग़में-जानां,कुछ ग़में-दौरां / फ़िराक़ गोरखपुरी तेरे आने की महफ़िल ने जो कुछ आहट-सी पाई है,  हर इक ने साफ़ देखा शमअ की लौ थरथराई है. तपाक और मुस्कराहट में भी ...

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