लेखनी कविता - तीरगी चांद के ज़ीने से सहर तक पहुँची

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तीरगी चांद के ज़ीने से सहर तक पहुँची  तीरगी चांद के ज़ीने से सहर तक पहुँची  ज़ुल्फ़ कन्धे से जो सरकी तो कमर तक पहुँची मैंने पूछा था कि ये हाथ ...

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