लेखनी कविता - पुराने शहरों के मंज़र निकलने लगते हैं

44 Part

78 times read

0 Liked

पुराने शहरों के मंज़र निकलने लगते हैं  पुराने शहरों के मंज़र निकलने लगते हैं  ज़मीं जहाँ भी खुले घर निकलने लगते हैं  मैं खोलता हूँ सदफ़ मोतियों के चक्कर में  मगर ...

Chapter

×