लेखनी कविता - गज़ल

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पेशानियों पे लिखे मुक़द्दर नहीं मिले| दस्तार कहाँ मिलेंगे जहाँ सर नहीं मिले| आवारगी को डूबते सूरज से रब्त है, मग़्रिब के बाद हम भी तो घर पर नहीं मिले| कल ...

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