लेखनी कविता - गज़ल

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हर एक चेहरे को ज़ख़्मों का आईना न कहो| ये ज़िन्दगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो| न जाने कौन सी मज़बूरीओं का क़ैदी हो, वो साथ छोड़ गया है ...

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