लेखनी कविता - गज़ल

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गज़ल मेरे कारोबार में सबने बड़ी इम्दाद की दाद लोगों की, गला अपना, ग़ज़ल उस्ताद की अपनी साँसें बेचकर मैंने जिसे आबाद की वो गली जन्नत तो अब भी है मगर ...

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