लेखनी कविता - गज़ल

44 Part

69 times read

0 Liked

गज़ल ये सानेहा तो किसी दिन गुज़रने वाला था मैं बच भी जाता तो इक रोज़ मरने वाला था तेरे सलूक तेरी आगही की उम्र दराज़ मेरे अज़ीज़ मेरा ज़ख़्म भरने ...

Chapter

×