लेखनी कविता - गज़ल

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गज़ल तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा करके दिल के बाज़ार में बैठे हैँ ख़सारा[1] करके एक चिन्गारी नज़र आई थी बस्ती मेँ उसे वो अलग हट गया आँधी को इशारा ...

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